परिंदा है मन ये मेरा
परिंदा है मन ये मेरा, उड़ने को बेताब,
आसमां की बाहों में, ढूंढे अपना हिसाब।
न सीमाएँ कोई, न जंजीरों का डर,
बस हवाओं के संग, बहने की है लहर।
कभी बादलों से बात करे, कभी चाँद को छू ले,
कभी समंदर की लहरों में, अपनी परछाईं ढूंढे।
हर शाख से कहे, मैं ठहरूंगा नहीं,
हर राह से गुज़रे, पर बंधूंगा नहीं।
आज़ाद हूँ, बेफिक्र हूँ, अपना ही आसमान है,
परिंदा हूँ मैं, उड़ान ही मेरी पहचान है।