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यथार्थ था कान्हा का आना
यथार्थ था कान्हा का आना,
धरती पर सत्य को दिखलाना।
जब छाया था संशय घना,
अर्जुन को गीता का सार पढ़ाना।
धर्म युद्ध के रण में खड़े,
डगमगाए जब अर्जुन के पग,
मुरलीधर ने ज्ञान दिया,
हर संशय को किया निष्कृत।
बोले – "कर्मण्येवाधिकारस्ते",
बस कर्म करो, फल की चिंता नहीं,
जो सत्य मार्ग पर चलता है,
उसका जीवन व्यर्थ नहीं।
माया से हटकर जो देखे,
समझे आत्मा का सच्चा भेद,
उसके लिए भय कैसा फिर?
हर पथ पर मिलता है स्वेद।
कान्हा का आना सत्य था,
हर युग में वो राह दिखाएँगे,
जो भी सच्ची लगन से पुकारे,
सखा बनकर चले आएँगे।