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ध्यान मग्न तपस्वी थे, जब विश्वामित्र महान,
तप की ज्वाला में जलते, बस था ईश्वर ध्यान।
देव लोक तब कांप उठा, देख तप की धार,
इंद्र घबरा उठे, हुआ मन में संदेह अपार।
मेनका को भेज दिया, मोहपाश रचाया,
रूप-गंध, मधुर स्वर से ध्यान हिला डुलाया।
क्षण भर को विचलित हुए, डगमगाई साधना,
पर जब सच का बोध हुआ, जागी फिर वेदना।
क्रोध जला था अंतर में, श्राप उसे दे डाला,
जिससे जिसने खेला था, उसी ने दंड निकाला।
पर अंततः समझ गए, सब विधि का विधान,
मोह-माया छोड़ फिर, बढ़े तप की ओर महान।
निकले थे बेख़ौफ़ आधी रात में,
चल रहे थे बेतकल्लुफ़ी से अपनी ही मस्ती में।
चाँद भी था हमारे ही जैसा,
बेख़बर, आवारा, अपनी ही हस्ती में।
हवा ने सरगोशी की,
रास्तों ने भी कोई फ़ुसफ़ुसाहट की,
पर हमें फ़र्क़ कहाँ पड़ता था,
हम तो अपनी धुन में चले जा रहे थे।
न जाने कहाँ से बेवक़ूफ़ी सामने आ गई,
और अक़्ल की सारी नक़ल उतर गई।
जिन कदमों को लगता था कि ज़मीं अपनी है,
वही थमकर सोचने लगे—अब ये कैसी घनी है?
होशियारी वही की वही रह गई,
हम आगे थे, पर रात वहीं रह गई।
समझ आया, मस्ती अपनी जगह,
पर कभी-कभी सोच भी ज़रूरी है सफ़र में।
विरोध से कुछ नहीं मिलता,
सिर्फ़ शोर मचाने से,
हक़ नहीं मिलते यूँ ही,
बस आँसू बहाने से।
अगर जलना है सूरज सा,
तो आग बनानी होगी,
अपने हक़ के लिए,
लड़ाई लड़नी होगी।
दुनिया नहीं सुनेगी,
ख़ुद को बुलंद बनाओ,
अपने अस्तित्व के लिए,
तूफ़ान उठाओ।
राह कठिन सही,
मंज़िल पास है,
जो डटकर लड़े,
वही ख़ास है।
अदिति राही
crazy girl
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Aarvi Nair
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