वो बन गया लेखक मजदूरी करते करते
अपनी भावनाओं से छुपते छुपाते
जाने कब वो कलाकार बन गया बोझ ढोते ढोते
अपनी थकान मिटी या नहीं
कलम की स्याही से वो
अल्फ़ाज़ सजा गया सपने सजाते सजाते
आज जहां ख्वाब सजने थे आंखों में
तो रुला गए उसे आज उसके हालात
फिर भी मुस्कुरा गया वो अपना पसीना बहाते बहाते
लोग कहते रहे मजदूर है
वो काम करता गया उसने सुनते उनके अल्फ़ाज़
वो मजदूर बन गया लेखक
बिना पढ़े किताब
हां सुना गया अपना दर्द
वो लिखते लिखते अल्फ़ाज़
अदिति राही
आज रात तक पांचवा पाठ अधूरी शादी का अपलोड हो जाएगा और मैं सोच रही हूं एक नई कहानी इसके साथ शुरू करूं जिसमें काफी कुछ हो और जिसको पढ़कर आप लोगों को मजा भी आए और वह कहानी आपके दिल और दिमाग में छा जाए और आपके इंतजार रहे कि कब उसका अगला पार्ट आएगा और साथ में मेरी यह भी कोशिश रहेगी कि मैं जल्द से जल्द उसे कहानी के पाठ और इस कहानी का पाठ अपलोड करते रहो उम्मीद है आप लोग मेरी कहानी पढ़ेंगे और पढ़कर अच्छे से रिव्यू देंगे और अगर कुछ कमी हुई तो उसके बारे में बताएंगे
धन्यवाद
अफसोस
अफसोस इस बात का नहीं,
कि तुमने मुझे नकार दिया,
बल्कि इस बात का है,
कि मैंने तुम्हें अपना मान लिया।
सोचा था तुम मेरी मंज़िल हो,
पर तुम तो एक राहगुज़र निकले,
मैंने दिल के पन्नों पर नाम लिखा,
और तुम हवा की तरह बिखर निकले।
तेरी बेरुख़ी पर शिकवा नहीं,
न ही तेरी बेवफ़ाई का ग़म,
बस खुद से ही नाराज़ हूँ,
कि क्यूँ तुझे अपना सब समझा हम।
अब न कोई शिकायत बाकी,
न कोई उम्मीद का सहारा,
बस सबक बन गया है इश्क़,
जिसे याद रखेगा ये दिल बेचारा।
मेरा इश्क भी तू, दीदार भी तू मेरा रब भी तू, रक़ीब भी तू। तेरी यादों में ही बहते रहे, मेरा साहिल भी तू, सलीब भी तू। तेरी राहों में खोए रहे हम, मेरा मंज़र भी तू, नसीब भी तू। जो मिले तुझसे, वो चैन भी था, मेरा ग़म भी तू, तबीब भी तू। तेरी आँखों में जो देखी थी दुनिया, मेरा ख़्वाब भी तू, हालात भी तू। बिछड़ कर भी तुझसे जिया जो कभी, वो जज़्बात भी तू, औक़ात भी तू।