रिश्ते...
ये कोई कागज़ पर लिखे हुए अल्फ़ाज़ नहीं होते,
ना ही कोई सौदा, जो पलट कर तौला जा सके।

रिश्ते तो वो धड़कनें हैं,
जो दो दिलों के बीच बिन कहे भी सुनाई देती हैं।
वो डोर हैं, जो जितनी कस कर थामी जाए,
उतनी ही नाज़ुक निकलती है।

कभी हल्की सी तकरार...
कभी बेवजह की खामोशी...
और फिर वो दरार...
जो नज़र तो आती है,
पर छुपाई नहीं जाती।

हाँ... सच है,
टूटे रिश्तों में गांठें पड़ ही जाती हैं,
चाहे जितना सुलझाओ,
वो निशान रह ही जाते हैं।

मगर...
अगर मोहब्बत सच्ची हो,
अगर समझदारी गहरी हो,
तो वही गांठें सबूत बन जाती हैं...
कि रिश्ता टूटा नहीं,
बल्कि और मज़बूत हुआ है।

रिश्ते निभाना आसान नहीं,
हर रोज़ अपने अहम को मारना पड़ता है,
हर रोज़ अपनी चाहतों से पहले,
किसी और की ख़्वाहिश रखनी पड़ती है।

लेकिन...
जो ये कर लेता है,
वो किसी से भी लड़ सकता है,
किसी भी मुश्किल का सामना कर सकता है।

क्योंकि रिश्ते...
सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं होते,
ये तो वो इबादत हैं,
जिसमें दो इंसान मिलकर
एक-दूसरे के लिए
ख़ुदा का रूप बन जाते हैं।

پسند