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rimjhim Sharma
पर मुझे छोड़ गई बेचैनी की घुटती हुई सांसों में।
तू मिट्टी में सो गई चुपचाप,
और मैं…
मैं ज़िंदा होते हुए भी हर दिन तुझमें दफ़न हो गया।
लोग कहते हैं, तू चली गई,
पर सच कहूं तो उस दिन मैं भी मर गया था…
बस मेरी सांसें अभी धोखा दे रही हैं,
वरना तेरे बिना कोई कैसे ज़िंदा रह सकता है?
हर सुबह तेरी कब्र पर आकर बैठता हूँ,
तेरे नाम की मिट्टी को छूकर रोता हूँ।
कभी सोचता हूँ —
क्या तू मुझे देखती होगी वहाँ से…?
क्या तुझे भी मेरी तन्हाई महसूस होती होगी?
तेरे जाने के बाद मैंने हँसना छोड़ दिया,
खुद से बात करना छोड़ दिया।
अब तो मेरी रातें बस तुझसे मुलाकात की उम्मीद में कटती हैं,
और दिन — बस तेरे बग़ैर होने के एहसास में तड़पते हैं।
तू तो सुकून की चादर ओढ़े चैन से सो गई,
और मैं?
मैं तो अब भी हर रोज़
तेरे नाम की चीख अपने सीने में दबाकर…
एक खामोश चीख बनकर जी रहा हूँ।
ना कोई शिकायत है, ना कोई इल्ज़ाम,
बस एक अधूरी मोहब्बत है —
जो अब भी तुझमें जी रही है,
और मुझमें मर रही है… हर पल… हर सांस… 💔
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