कोई चेहरा नहीं था जिससे मोहब्बत की,
बस आईने में खुद को देखा… और टूट कर चाह लिया।

लोग कहते हैं इश्क़ किसी और से होता है,
मैंने खुद के जख्मों को चूमकर मोहब्बत कर ली।

हर दर्द जो किसी और ने दिया, मैंने उसे सीने से लगाया,
क्योंकि औरों ने छोड़ा… पर मैंने खुद को कभी ना छोड़ा।

मैं चलता रहा अकेले… हर भीड़ में खुद को ढूंढता,
हर मुस्कान के पीछे एक सिसकी को चुपचाप सहलाता।

लोग आशिक़ों के लिए शेर लिखते हैं,
मैंने अपनी तन्हाई के लिए किताबें जला दीं।

मैंने मोहब्बत को नाम नहीं दिया…
क्योंकि ये मोहब्बत, सिर्फ मेरी और मेरी थी।

अब कोई आए या ना आए, फर्क नहीं पड़ता,
क्योंकि अब मैं खुद को इस कदर चाहता हूं… कि किसी और की ज़रूरत ही नहीं।

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