वो बन गया लेखक मजदूरी करते करते
अपनी भावनाओं से छुपते छुपाते
जाने कब वो कलाकार बन गया बोझ ढोते ढोते
अपनी थकान मिटी या नहीं
कलम की स्याही से वो
अल्फ़ाज़ सजा गया सपने सजाते सजाते
आज जहां ख्वाब सजने थे आंखों में
तो रुला गए उसे आज उसके हालात
फिर भी मुस्कुरा गया वो अपना पसीना बहाते बहाते
लोग कहते रहे मजदूर है
वो काम करता गया उसने सुनते उनके अल्फ़ाज़
वो मजदूर बन गया लेखक
बिना पढ़े किताब
हां सुना गया अपना दर्द
वो लिखते लिखते अल्फ़ाज़
अदिति राही
Ravi
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