अफसोस

अफसोस इस बात का नहीं,
कि तुमने मुझे नकार दिया,
बल्कि इस बात का है,
कि मैंने तुम्हें अपना मान लिया।

सोचा था तुम मेरी मंज़िल हो,
पर तुम तो एक राहगुज़र निकले,
मैंने दिल के पन्नों पर नाम लिखा,
और तुम हवा की तरह बिखर निकले।

तेरी बेरुख़ी पर शिकवा नहीं,
न ही तेरी बेवफ़ाई का ग़म,
बस खुद से ही नाराज़ हूँ,
कि क्यूँ तुझे अपना सब समझा हम।

अब न कोई शिकायत बाकी,
न कोई उम्मीद का सहारा,
बस सबक बन गया है इश्क़,
जिसे याद रखेगा ये दिल बेचारा।

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