रिश्ता बेनाम सही

"कहते हैं इश्क़ दो जिस्मों का मेल होता है...
पर मेरा इश्क़? वो तो बस रूह से जुड़ा है।
वो कहीं है… दूर, बहुत दूर…
लेकिन फिर भी दिल के सबसे करीब है।"

"मैंने कभी उसे छूने की ख्वाहिश नहीं की,
बस महसूस किया है उसे… हर सांस में,
हर दुआ में, हर तन्हाई में..."

"वो जब पास नहीं होता,
तब भी ऐसा लगता है जैसे उसकी मौजदूगी मुझे घेरे हुए है।
उसकी हँसी… उसकी खामोशी…
सब कुछ मेरे अंदर कहीं गूंजता है।"

"कभी-कभी तो लगता है,
कि मैं ही वो हूँ… और वो ही मैं।
हम दोनों एक-दूसरे की रूह में उतर चुके हैं…
अब जुदा होना मुमकिन नहीं।"

"अगर इश्क़ बस पाने का नाम होता,
तो मैं कब का हार मान चुकी होती।
मगर मेरा इश्क़...
इबादत है।
वो सजदे की तरह पाक है...
जिसमें ना शर्त है, ना शिकायत..."

"काश... उसे कभी एहसास हो सके,
कि कोई है, जो उसे रूह से भी ज़्यादा चाहता है।
बिना मांगे...
बिना कहे...
बस ताउम्र निभाना चाहता है..."

पसंद करना