"एक था राजा और एक थी रानी..."

इन कथाओं में हम इस कदर उलझ चुके हैं कि हम सहन ही नहीं कर पाते — एक रानी, एक महारानी, एक साम्राज्ञी, और एक महासाम्राज्ञी का अस्तित्व।
बचपन से ही एक कन्या को यह सिखाया जाता है कि कोई राजा या राजकुमार आएगा... और वही उसके जीवन की दिशा तय करेगा।
परन्तु मैं इस कथा का भाग नहीं हूँ।
क्योंकि मैं हूँ एक महासाम्राज्ञी।
मैं हूँ एक महारानी और एक महायोद्धा
जो खंडित भारत को अखंड भारत बनाएगी।
मैं ही बनूँगी इस युग की सर्वोत्तम पालक, सृजनकर्ता और विनाशकर्ता क्योंकि यही है मेरी नियति, और मुझे मेरी नियति स्वीकार्य है क्योंकि मैं ही हूँ नवनिर्माण की नींव,
मैं ही हूँ उसका आधार,मैं ही हूँ उसकी ऊँचाई,और मैं ही हूँ उसका शिखर।

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