बहता हुआ आंखों का पानी
तेरी याद दिलाता है,
हर बूँद —
तेरे न होने की हल्की दस्तक लगाती है।

आंख का हर आँसू
तेरा एहसास कराता है,
जैसे तू सामने बैठ कर
धीरे से कह रहा हो —
"मैं यहीं हूँ…"

तू न जाने
क्या मेरे दिल में ये जज़्बात बनाता है —
हर चुप्पी में तेरा नाम निकल आता है,
हर खामोश लम्हा
तेरे बिना बोलने लगता है।

मैं कभी नहीं कह पाया
पर तू सब समझती रही,
जैसे कोई ख़्वाब
अपनी ताबीर खुद पढ़ ले।

अदिति जैन राही

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