ज़मीर, वो आईना जो सच्चाई दिखाए,
हर छल, हर झूठ से इंसान को बचाए।
जो दिल के कोने में खामोश सा बैठा,
पर जब बोले, तो पूरी दुनिया हिला जाए।
सच और झूठ के बीच जब हो जंग,
ज़मीर बनता है वहां सच्चाई का संग।
वो रौशनी जो अंधेरे को चीर जाए,
इंसान को उसकी असली राह दिखाए।
कभी आसान नहीं उसकी राह चलना,
पर यही वो है, जो बुराई से लड़ना सिखाए।
दौलत, शौहरत भले ही सामने हों खड़े,
ज़मीर कहे, "सच्चाई से न मुंह मोड़े।"
वो गवाह है, हर अच्छे-बुरे कर्म का,
जो याद दिलाता है असल धरम का।
न बिके, न झुके किसी भी कीमत पर,
ज़मीर की आवाज़ अमर है हर सफर।
तो सुनो उसे, जो दिल के अंदर गूंजे,
वो इंसानियत की बात हर पल बुझे।