कौन हूं मैं?
कौन हूं मैं?
यह प्रश्न पूछता, हर सुबह और हर रात,
क्या हूं मैं एक धारा, या बंजर कोई घाट?
क्या हूं मैं आसमान का चंद्रमा,
या धरती का कोई अंश छूट चुका?
क्या हूं मैं विचारों का वह बहाव,
या मन के भीतर बस एक पड़ाव?
क्या हूं मैं कर्मों का लेखा-जोखा,
या सपनों का कोई सजीव क़िस्सा?
कभी हूं मैं एक नादान सवाल,
कभी जवाबों की अनगिनत मिसाल।
कभी हूं जलती हुई अग्नि का शोल,
कभी शांत झील का सजीव वास।
कौन हूं मैं, यह जानना कठिन,
शायद हूं सबकुछ, या फिर बिल्कुल नगण्य।
एक पल का प्रवाह, या युगों का सार,
अपने ही उत्तर में, मैं खुद बेज़ार।
कौन हूं मैं?
एक खोज, एक मंथन,
हर कदम पर रचता स्वयं का निर्धारण।
शायद अंत में यही हो सच्चाई,
मैं हूं वह, जो खुद को समझने की चाह में परछाईं।
अदिति राही