महज सुनते रहे धड़कनों को,
कुछ समझ न पाए,
शब्दों की चुप्पी में छिपे अर्थ,
कभी सुलझ न पाए।
दिल की बातें दिल तक ही रहीं,
लफ्ज़ों ने रास्ता खो दिया,
जुबां खामोश थी लेकिन,
आंखों ने सब कुछ कह दिया।
समझना तो चाहा हमने,
पर खुद को समझ न पाए,
महज सुनते रहे धड़कनों को,
और खुद में ही खो गए।
वक्त की परछाई में बंधे,
सपनों को छूने चले थे,
धड़कनों की धुन सुनते-सुनते,
रास्ते भटक गए थे।
अब धड़कनों की गूंज है बस,
कानों में गूंजती रहती है,
पर क्या कह रही है ये धड़कन,
अब भी समझ न आती है।
अदिति राही
Jivan Sharma
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raahi Tera iintjar
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