चमकते चिराग को आँधियों के हवाले कर दिया, गुस्से में,
जो सहारा देने आए, उन्हें भी पराया कर दिया, गुस्से में।
जिसने हर दर्द को अपना समझकर मरहम रखा,
उसी अपने को ही बेगाना कर दिया, गुस्से में।
जो कहता था— "ख़्वाब देखो, हौसले की रोशनी में,"
उसकी हर सीख को धुएँ में उड़ा दिया, गुस्से में।
अब आईने से नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं होती,
खुद को खुद से ही मिटा दिया, गुस्से में।
...@writer_aman_1✍️
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