ॐ श्री परमात्मने नमः

यद्यपि होनापन (सत्ता) आत्मा का ही है, शरीर का नहीं, तथापि साधक से भूल यह होती है कि वह पहले शरीर को देखकर फिर उसमें आत्मा को देखता है, पहले आकृति को देखकर फिर भाव को देखता है। ऊपर लगायी हुई पालिश कब तक टिकेगी ?
आपका जो स्‍त्री-पुरुष रूप से जो साकाररूप है, यह ऊपर का चोला है, यह साधक नहीं है । जो अपने को स्‍त्री, पुरुष, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि मानता है, वह साधक नहीं होता। साधक शरीर नहीं होता
शरीर, परिवार, समाज और संसार की सेवा के काम आयेगा, इसके सिवाय किसी काम नहीं आयेगा। साधक के जीवन में शरीर का कोई उपयोग नहीं है
भगवान की तरफ चलने वाले साधक मात्र के न स्थूलशरीर काम आता है, न सूक्ष्मशरीर काम आता है, न कारणशरीर काम आता है। यह बड़ी दामी बात है ! बड़े-बड़े ग्रन्थों मे समाधि की बड़ी महिमा गायी गयी है, पर वह भी आपके काम नहीं आती
शरीर और संसार को अपना तथा अपने लिये मानना बहुत घातक है। ऐसा मानने वाला साधक नहीं बन सकता, भले ही उम्र बीत जाय

লাইক