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धैर्य राणा जिसकी ज़िंदगी उसकी पत्नी की मौत के बाद जैसे थम-सी गई थी।वो अब बस अपनी पाँच साल के बेटी की परवरिश में ही खुद को डुबो चुका था।लेकिन उसकी माँ, अपने बेटे को यूँ तन्हा टूटते नहीं देख पा रही थी।बार-बार कहती रही — "ज़िंदगी फिर से जीने की कोशिश कर, धैर्य..."
लेकिन धैर्य उनकी बात हमेशा टालता रहा…
जब मां ने देखा कि धैर्य पर कोई असर नहीं हुआ… तो एक दिन उन्होंने धैर्य को इमोशनल ब्लैकमेल कर डाला।
थक-हारकर, बेमन से ही सही… धैर्य ने मां की बात मान ली।
"ठीक है… मिल लेता हूँ उस लड़की से… लेकिन सिर्फ़ एक बार।"और जैसे ही उसकी नज़र पड़ी उस लड़की पर...
उसका दिल एक पल के लिए काँप उठा… और उसकी साँसें जैसे जकड़ सी गईं।“ये... कैसे हो सकता है?”
“नहीं… ये सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़ नहीं हो सकता।”
धैर्य के मन में अजीब सी हलचल होने लगी।
अब धैर्य की ज़िंदगी एक बार फिर उस मोड़ पर थी...
जहाँ ज़िंदगी उसे मजबूर कर रही थी दोबारा जीने के लिए…
लेकिन शायद, इस बार…
बिना जाने कि ये लड़की उसकी ज़िंदगी बदलने आई है… या उजाड़ने।