10 साल... एक-दो नहीं… पूरे दस साल।
मैंने उन्हें यूँ ही जी लिया, जैसे कोई मेडिकल बुक पलटता है —
हर पन्ना जरूरी था, लेकिन दिल बस वहीं अटका था… जहाँ ठकुराइन को छोड़ा था।
अब मैं एक सर्जन बन चुका हूँ।
नाम के आगे "डॉ." जुड़ गया है, पर नाम के पीछे "ठकुराइन" अब भी जुड़ी है… बस बेआवाज़।
हर केस, हर ओटी, हर इमरजेंसी में मैंने खुद को खोया है — ताकि यादें वापस न आएं।
पर जिस दिन किसी पेशेंट का नाम धरा होता, मेरी उंगलियाँ कांप जातीं।
धरा ठाकुर।
ये नाम अब भी मेरी स्मृतियों की जड़ में जमा हुआ है…  कभी-कभी सोचता हूँ —
अगर वो अब भी मिले… तो क्या कहूँगा?
“कैसी हो, ठकुराइन?”
लेकिन ये  कहने के लिए उससे मिलना पड़ेगा।
और अब, शायद वो वक्त आ गया है…
Check out "सुन सांवरे!" novel on Story Mania


https://storymania.in/SZDbibiAuxls

अधिक पढ़ें

Error: Failed to parse HTML content

पसंद करना