माँ : शब्द नहीं, संपूर्ण संसार



माँ, दुनिया के लिए एक शब्द और मेरे लिए पूरी दुनिया।
इन्होंने ही मुझे जन्म दिया और दी हैं जहाँ की सारी खुशियां।

निराकार मिट्टी के इस ढेर को साकार था जिसने कर दिया।
वो हैं प्यारी माँ जिसने मेरे लिए, अपना हर सुख छोड़ दिया।

माँ, एक ऐसा शब्द जिसे मैं, पूरी तरह समझ ही ना सकूं।
फिर माँ की ममता की भला, कैसे ही मैं व्याख्या करूं।

जन्म से पहले भी उसने, मांगा था मुझे भगवान से।
मन्नतें की थी उसने कई, था उसकी दुआओं का फल मैं।

कुछ नहीं था वजूद मेरा, अस्तित्व उसने ही दिया है मुझको।
आंखें मुझको उसने ही दीं और रंगों से भी मिलाया मुझको।

मुख भी है उसका दिया हुआ, वाणी भी मेरी उसी से है।
सांसें दी हैं उसने मुझे, और ये जीवन भी मेरा उसी से है।

समाज में रहने की सीख दी, अच्छा बुरा बताया उसने।
ज्ञान मुझे कहाँ था कुछ भी, ज्ञानी मुझे बनाया उसने।

चलते हुए जहाँ भी गिरता, एक वो ही थी सहारा मेरा।
दुआ ही थी उसकी ये कि, जीवन अब ये सफल है मेरा।

जब हवनकुंड में गिरा था मैं, उसने सीने से मुझे लगाया था।
एक ऐसी योद्धा है वो जिसने, मुझे हर मुसीबत से बचाया था।

तबियत मेरी जो बिगड़े कभी भी, जाग कर रात बिता दे वो।
मुझे एक खरोंच भी आ जाए तो, पूरा घर सिर पर उठा ले वो।

माँ वो पहली पाठशाला है, जहाँ जीवन मैंने जीना सीखा।
मेरी पहली गुरु भी हैं वो, जिन्होंने दी है मुझको पहली दीक्षा।

कभी खुद भूखी रह कर उसने, भर पेट खिलाया मुझको।
कभी आंसू अपने पीकर के, मीठी नींद में सुलाया मुझको।

खुद टूटी पर मुझे संभाला, हर बार कुछ नया सिखाया मुझको।
कभी किसी का दिल ना दुखाऊं, ये पाठ भी है पढ़ाया मुझको।

माँ के हाथ की रोटियाँ अब भी, दुनिया के खाने पर भारी हैं।
उसकी लोरी की नींदें आज भी, सबसे प्यारी और न्यारी हैं।

बचपन की हर याद में माँ है, उसकी गोद में हर त्यौहार था।
कभी स्कूल की घबराहट में, उसका चेहरा ही मेरा संसार था।

आज भी कोई चोट लगे तो, याद उसकी ही आती है।
जब वो होती है दूर कहीं तो, उसकी याद बड़ा सताती है।

दूर होकर भी पास है मेरे, ऐसा ही अनोखा प्यार है उसका।
सफल हो रहा हूँ मैं जहाँ भी, ये असर है उसकी दुआओं का।
~ देव श्रीवास्तव " दिव्यम " ✍️

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