"मीत ए मीरज़ा" read this story on my profile

कुछ अफ़साने अधूरे थे, कुछ लफ्ज़ बेजुबान थे,
कुछ रिश्तों के आईने धुंधले थे, कुछ जज़्बात बेक़रार थे।
क़िस्मत ने लिखी एक ऐसी दास्तां, जहाँ मोहब्बत भी मजबूर थी,
और नफ़रत भी लाचार थी।
मगर दिल की सरहदें तोड़कर, जब दो रूहें मिलीं,
तो वक़्त भी झुक गया, और तक़दीर भी मुस्कुरा पड़ी।
यही कहानी है… "मीत ए मीरज़ा" की।

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