"मुझे लफ़्ज़ों में इश्क़ जताना पसंद है,
उसे खामोशी से इश्क़ निभाना पसंद है,
वो मुख्तसर सी गुफ्तगू का आदि,
मैं जैसे मुसलसल बोलते रहने की फरियादी,
मैं उसकी खामोश निगाहों को पढ़ने की हाफ़िज़,
वो जैसे मेरे जज़्बातों का अकेला मुहाफ़िज़,
मैं नादान सी जैसे कोई नासमझ परिंदा,
वो समझदार सा जैसे कोई फरिश्ता संजीदा"...!!!




(मुख्तसर: छोटा/अल्प..... मुहाफ़िज़:संरक्षक)




#दिल_के_जज़्बात#फरी_की_कलम_से.....✍️✍️

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