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सोच रही हूं कई दिनों से,
लिखना छोड़ दूं इस बार।

जब नही लिख पाती
वक्त की कमी में।
नही दे पाती,
अपने शब्दों को आकार।
नही गढ़ पाती मैं,
कुछ किरदार।
नही कह पाती मैं
कुछ संवाद।
नही जोड़ पाती मैं,
कुछ पक्तियां।
नही बना पाती मैं,
कुछ संसार।
मन करता है तब मेरा,
लिखना छोड़ दूं इस बार।

सोचती हुई कई बार,
लिखती नही मैं कुछ खास।
नही समझा पाई मैं कभी,
अपने लिखे विचार।
नही महसूस करा पाई मैं कभी,
अपने लिखे एहसास।
नही दिखा पाई मैं कभी,
अपने लिखे संघर्ष।
नही जीवित कर पाई मैं कभी,
अपने लिखे कुछ किरदार।
नही सुलझा पाई मैं कभी,
अपने लिखे कुछ रहस्य।
मन करता है तब मेरा,
लिखना छोड़ दूं इस बार।

परे कर इन बातों को,
लिखती रही बार बार।
नियमित लिखने की आस में,
कभी नियमित ना लिख पाई मैं।
दिमाग में चल रहे विचारों को
कभी शब्द ना दे पाई मैं।
दिखाकर किरदारों को अनेक सपने,
पूरा एक भी ना कर पाई मैं।
बुनकर नित नई कहानियों को,
अंजाम ना दे पाई मैं।
लाख कोशिशों के बाद भी,
पूरी कहानी ना कह पाई मैं।
करता है तब मन मेरा,
लिखना छोड़ दूं इस बार।

फंस इस भंवर बीच,
आया एक विचार।
दे दूंगी इस बार,
अपनी कलम को विराम।
बीच इस भंवर के,
भीतर से आई एक आवाज।
पहले कर ले तू कुछ देर आराम,
पर मान ना कभी हार।
क्या होगा उन हाथों का,
जो हरदम थे तेरे साथ।
याद कर उन समीक्षकों को,
जिन्होंने मनोबल तेरा बढ़ाया।
याद कर उन तानों को,
जिन्होंने नीचे तुझे गिराया।
कहा था लोगों ने कई बार,
लेखन नही है कोई काम।
याद कर उस समय को,
जब कोई ना था तेरे पास।
जब छोड़ गए सब अपने,
लेखन ने तुझे अपनाया।
बन बैठा वह तेरा दोस्त,
जीना तुझे सिखाया।
याद कर वो वादा,
किया जो तूने खुद से कई बार।
अपनी छोटी सी इस दुनियां में,
बनाएंगी तू अनेक संसार।
जब याद आई यह बात,
छोड़ दिया मैंने वह ख्याल।

दिलाया खुद को विश्वास,
कर सकती है तू इस बार।
उठ खड़ी हो इक बार,
कर एक नया आगाज।
हैं अभी सफर की शुरूवात,
करना बहुत कुछ समय के साथ।
लिखनी है अनगिनत कहानियां
जो बनाएगी एक नया इतिहास।
करने है अनेकों वहम दूर,
जो नीचे खींचते गए हर बार।
करना है कुछ ऐसा काम,
कमा सकूं जिससे नाम।
कर सके वे गर्व,
जो थे तेरे संग।
बता सकूं लोगों को,
लेखन नही है कोई बुरा काम।
याद कर इन बातों को
लिखने बैठी हूं इस बार।

नही छोड़ रही मैं लिखना,
पूरी कोशिश कर लेती हूं एक बार।


#आँच

(बताइए आपकी लेखिका कैसा लिखती है🤗)

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