इंतज़ार था हमें तेरा सदियों से, गुज़र गई मेरी सारी उम्र तेरे इंतज़ार में। झूठे थे वो वादे, झूठी थी वो रातें, और वो तमाम बातें जो बिखरी थीं उन मुलाकातों में। लेकिन क़िस्मत ने जब तक़दीरें बदलीं, तो तू भी सामने, मैं भी सामने। फर्क़ बस इतना था मैं ज़मीन पर साँसें ले रही थी, और तू तस्वीर बनकर कैद खड़ा था दीवारों पर मेरे सामने। तेरे आँगन में कोई मासूम हँसी खिलखिला रही थी, तेरी हमनफ़स भी भीगी पलकों में तन्हाई छुपा रही थी। किसे कहूँ ये दर्द बेवफ़ाई का था या वफ़ा की सज़ा का, दिल में जो टीस उठी, वो तेरी बेरुख़ी थी या मेरी बदक़िस्मती की वजह था ...💔

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