हिम्मत?" वह एक हल्की सी हँसी छोड़ता है। "तुम शायद भूल रही हो, तत्सवि पाठक, कि मैं सिर्फ़ तुम्हारे घर में नहीं, तुम्हारी पूरी ज़िंदगी में दाखिल हो चुका हूँ। चाहो या न चाहो, अब मेरी छाया से पीछा छुड़ाना तुम्हारे बस की बात नहीं।"


" डराने आए हो? तो मेरी एक बात कान खोलकर सुनलो मै किसी के बाप से नही डरती , और तुम्हे तो मै जेल भेज कर रहूँगी सानिध्य सिंह शेखावत!" तत्सवि गुस्से मे एक कदम उसकी ओर बढ़ाती है और उसे उँगली दिखाकर हर शब्द पर जोर देते हुए कहती है।
- " कैसा तेरा इश्क पिया [His obsession]

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